जनपद कासगंज के प्रमुख प्राचीन व पौराणिक स्थलों का संक्षिप्त इतिहास

इतिहास और उससे जुड़ी विरासत को लेकर जनपद कासगंज एक विशेष महत्त्व रखता है। कासगंज का इतिहास वैदिककाल से ही अपने प्रभाव में रहा है। जनपद में ऐसे कई प्राचीन विरासत और पुरातात्विक स्थल आज भी मौजूद हैं, जो यहां के समृद्धशाली इतिहास होने का प्रमाण देते हैं। जनपद कासगंज के प्रमुख प्राचीन व पौराणिक स्थलों का संक्षिप्त इतिहास इस प्रकार है-

1- जखेरा पुरातात्विक स्थल : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अनुसार जखेरा भारत के प्रमुख पुरातात्विक स्थलों की सूची में शामिल है। वर्ष 1860 से 1870 ई. के दौरान विश्व के प्रख्यात पुरातत्ववेत्ता अलेग्जेंडर कनिंघम ने जखेरा पुरातात्विक स्थल की पहली बार खुदाई की थी। जिसके बाद वर्ष 1974 से लेकर 1987 ई. के दौरान अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने यहां तीन चरणों में खुदाई की। तीसरे चरण में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पुरातत्ववेत्ता एमडीएन साही ने जखेरा पुरातात्विक स्थल को लेकर सबसे बड़ा अनुसंधान किया। अवशेषों के रूप में यहां से हड्डियाँ, लोहा, तांबा, मोती, सोने के तार, आभूषण, कंघी, पक्के फर्श, पक्के घर, ग्रेवल, चूना लेप, पोस्ट होल, हसिया के साथ मिट्टी के पके हुए व चित्रित वर्तन प्राप्त हुए। जखेरा पुरातात्विक स्थल से तृतीय संस्कृति अर्थात एक हज़ार ईसा पूर्व की चित्रित धूसर मृदभांड संस्कृति के प्रमाण मिले हैं। जिसे उत्तरकाल एवं उत्तरवैदिककाल कहा जाता है। इसे महाभारत का समकाल भी माना जाता है। इस स्थान को कुसक के नाम से जाना जाता था। जखेरा पुरातात्विक स्थल से खुदाई के दौरान मिले अवशेषों से इस बात का खुलासा हुआ है कि, यहां उस दौर में गंगा वैली की एक सबसे मॉर्डन कॉलोनी मौजूद थी।

2- नदरई का घंटा : नदरई में स्थित विशाल घंटा प्रथम आंग्ल-बर्मी युद्ध की याद दिलाता है। इस घंटे को बर्मा पर मिली जीत का सबसे बड़ा प्रतीक माना जाता है। ब्रिटिश आर्मी ने कासगंज के लड़ाके भीमसेन को एक टुकड़ी का कमांडर बनाकर वर्ष 1824 ई. में बर्मा पर हमले के लिए भेजा था। युद्ध में अप्रत्याशित जीत से ब्रिटिश आर्मी कमांडर भीमसेन की बहादुरी और पराक्रम से बेहद प्रभावित थी। बर्मा पर मिली इस जीत के उपरांत ब्रिटिश आर्मी ने भीमसेन को बड़ा इनाम देने की घोषणा करते हुए बर्मा से लाया गया यह विशाल घंटा बतौर इनाम उन्हें भेंट किया था, भीमसेन ने जिसे कासगंज स्थित नदरई गांव के एक मंदिर में स्थापित किया।

3- नदरई एक्वाडक्ट : वर्ष 1889 ई. में बनकर तैयार हुआ नदरई एक्वाडक्ट इंजिनीरिंग व संरचना का सबसे अदभुत नमूना है। इस एक्वाडक्ट के नीचे से काली नदी और ऊपर से लोअर गंगा कैनाल गुजरती है।

4- गार्डनर हाउस व गार्डनर का मकबरा : अठारवीं शताब्दी में इंग्लैंड से भारत आए कर्नल विलियम लिनिअस गार्डनर ने कासगंज के समीपवर्ती ग्राम छावनी में एक हॉर्स रेजिमेंट की स्थापना की थी, इस दौरान कर्नल गार्डनर अपने पूरे परिवार के साथ यहीं कासगंज के इसी छावनी गाँव में ही रहते थे, गार्डनर परिवार के मृत पूर्वजों की कब्र आज भी इस गांव में मौजूद हैं, यह स्थान भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित है।

किला शंकरगढ़ : किला शंकरगढ़ का निर्माण राजा शंकर सिंह जी ने वर्ष 1868 ई. में करवाया था। यह इंडो राजपूताना वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। इसमें एक भव्य विशाल पूर्वमुखी द्वार और नौ बुर्ज हैं। राजा साहब ने इसके दक्षिण पूर्व बुर्ज पर एक गुंबद के आकार का शिव मंदिर बनवाया था, जिसे शंकरेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। इसके उत्तर पूर्व बुर्ज पर एक सैयद बाबा का मजार इसे गंगा जमुनी संस्कृति का उदाहरण देता है। पारिवारिक निवास के लिए एक भव्य महल, कोठी, शाही भोजन कक्ष, कोठार, कचेहरी, बावर्चीखाना, हाथियों के लिए छीलखाना और घोड़ों को रखने के लिए अस्तबल किले के अंदर की कुछ महत्वपूर्ण इमारतें थीं। शाही परिवार के सदस्य इस किले में रहते हैं और इसकी देखभाल करते हैं। इस किले में आज भी सैकड़ों की संख्या में पुरावशेष संरक्षित हैं।

6- शेरनाथ मंदिर : कासगंज के रेलवे रोड पर स्थित व भगवान् शिव को समर्पित एक प्राचीन शिव मंदिर, जो वर्तमान में नाथ संप्रदाय की देखरेख में है।

7- पारना मठ : कासगंज के आवास विकास कॉलोनी में स्थित एक अति प्राचीन पारना मठ मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, 16 वीं शताब्दी में निर्मित इस मंदिर के नीचे सुरंग और तहखाने होने की बात किस्से कहानियों का हिस्सा है।

8- मां चामुंडा देवी मंदिर : वर्ष 1901 ई. के आसपास पीपल की जड़ से मां चामुंडा के विग्रह का प्राकट्य हुआ था, तबसे लेकर आज तक यह मंदिर आस्था का एक बड़ा केंद्र है, प्रतिदिन असंख्य श्रद्धालु यहां दर्शन व मनोरथ पूर्ति के लिए आते हैं।

9- भूतेश्वर मंदिर : कासगंज में भगवान शिव को समर्पित एक प्राचीन शिव मंदिर।

10- शीतला माता मंदिर : कासगंज के सोरों गेट पर स्थित एक अति प्राचीन मंदिर जो मां शीतला को समर्पित है।

11- प्रभु पार्क : कासगंज का सबसे प्रसिद्ध पार्क जो आम लोगों के मनोरंजन का एक बड़ा केंद्र है, इसके अतिरिक्त इस परिसर में मंदिरों की एक बड़ी श्रृंखला मौजूद है, जिनमें लक्ष्मी नारायण, सूर्यदेव, मनकामेश्वर, मां दुर्गा, मां काली, मां संतोषी, शनि देव, नवगृह, श्री गणेश व बालाजी मंदिर भी मौजूद हैं। ऐतिहासिक जानकारों के अनुसार सैकड़ों वर्ष पूर्व एक विशाल सरोवर था।

12- सीताराम मंदिर : सोरों जी का सीताराम मंदिर एक ऊंचे टीले पर दुर्गनुमा आकृति में स्थित है, एवं यह टीला प्राचीन काल की विभिन्न संस्कृतियों को समाए हुए है। इस मंदिर मंदिर की मौजूदा संरचना एक बहुत बड़े व प्राचीन मंदिर के ढांचे का बचा हुआ एक हिस्सा है, इसका एक बड़ा हिस्सा जो कि मुख्यतः गर्भगृह व अन्तराला था, वह पूर्व में नष्ट हो चुका है, मौजूदा मंदिर मंडप में व्यवस्थित है, इसी मंडप में संगीत साधना हुआ करती थी, मौजूदा ढांचे की पुरातात्विक एवं स्थापत्य के अध्ययन से यह विदित होता है कि मंदिर के मौजूदा ढांचे का निर्माण 10 वीं एवं 11 वीं शताब्दी में निर्मित हुआ है, यह मंदिर एक ऊंचे अधिस्थान पर निर्मित है, एवं मौजूदा ढांचा एक मंडप में निर्मित है, उसके चारों दिशाओं में निकास द्वार बनाए गए थे, एवं मंदिर का आंतरिक एवं बाह्य आवरण बहुत ही उत्कृष्ट नक्काशी से शुशोभित है, जो भी नक्काशी विद्यमान है, वो भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों को व्यक्त करती है। वहीं चालुक्य व सोलंकी वंशीय नृपतियों का जीर्ण विशेष दुर्ग, कोल्लूक ब्रह्मणों द्वारा जीर्णोद्धारित श्री सीताराम मंदिर संगीत शास्त्र के आचार्य व राग रागनियों के प्रवर्तक स्वामी श्री हरिहरदास जी का समाधि स्थल/साधना स्थली एवं श्री तुलसीदास जी व स्वामी नन्ददास जी की संगीत शिक्षा स्थली है। किवदंती है कि भगवान श्री राम व माता सीता ने अपनी सूकर क्षेत्र तीर्थयात्रा के दौरान इस स्थान पर प्रवास किया था। वहीँ अर्जुन के प्रपौत्र राजा जन्मेजय ने इस स्थान पर एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था।

13- बटुक भैरवनाथ मंदिर : सोरों जी का बटुक भैरवनाथ मंदिर एक पौराणिक स्थान है, कालांतर में यह तंत्र साधना का सबसे बड़ा केंद्र था। इस मंदिर परिसर में गृद्धवट नाम का एक सतयुगीन वैदिक वृक्ष आज भी मौजूद है। बटुक भैरव व गृद्धवट के अतिरिक्त यहां आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित श्रीयंत्र व श्री दुर्गा की 108 सिद्धपीठों में से एक श्री जया जी पीठ भी स्थित है, सोरों जी की जया देवी सिद्ध पीठ श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्तोत्र के अनुसार 8 वें खंड में संदर्भित हैं, वहीँ श्रीमददेवीभागवत स्कन्द महापुराण व मत्स्य महापुराण में 23 वें खंड में संदर्भित है। स्कन्द महापुराण के अनुसार जया देवी को सूकर क्षेत्र की महाशक्ति के रूप में वर्णित किया गया है। पुराणों में यह स्थान गृद्धवटतीर्थ शाकोटकतीर्थ व आदित्यतीर्थ के नाम से विख्यात है।

14- भागीरथ व कपिलमुनि की गुफा : वैयाकरण भूषण पंडित दशरथ शास्त्री की पुस्तक सूकर क्षेत्र माहात्म्यम् के अनुसार राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिये ब्राह्मणों की आज्ञा से सोरों जी के पास इस स्थान तपस्या की थी, जो स्थान आज भागीरथ की गुफा के नाम से विख्यात है। राजा भागीरथ की तपोस्थली से पूर्व यह गुफा कपिल मुनि का वही पाताल लोक था जहां इंद्र के छल से अज्ञात कपिल मुनि ने कुपित होकर राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को अपने क्रोधाग्नि से भस्म कर दिया था। कहा जाता है कि प्रथ्वी पर गंगा को लाने का भागीरथ का संकल्प इसी स्थान तक था। यहां के बाद गंगा अपना मार्ग स्वतः बनातीं हुई आगे की ओर बढ़ती हुई चली गयीं। गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए भागीरथ ने भारत वर्ष के विभिन्न स्थानों पर तप किया, जिनमें सोरों जी शूकर क्षेत्र की इस पौराणिक गुफा का नाम प्रमुखता से आता है। वही इस गुफा के टीले पर गोस्वामी तुलसीदास जी के गुरु श्री नृसिंह का समाधि स्थल भी है।

15- वनखंडेश्वर महादेव : सोरों जी पंचकोशी परिक्रमा मार्ग पर भागीरथ गुफा के सामने स्थित एक प्राचीन मंदिर जो भगवान शिव को समर्पित है।

16- हरिपदी आदिगंगा : पौराणिक अनुश्रुतियों के अनुसार सोरों जी सूकर क्षेत्र में त्रेतायुग की भागीरथी गंगा के अवतरण से पूर्व सतयुग में भी यहां हरिपदी आदिगंगा विद्यमान थीं। यह वही पवित्र स्थान है, जहां भगवान विष्णु ने श्री वराह रूप धारण किया, तथा दैत्य हिरण्याक्ष का वध कर भूदेवी पृथ्वी का उद्धार किया, एवं उसी स्थान पर पृथ्वी की पुनर्स्थापना की। हरिपदी में मृत पूर्वजों की अस्थियाँ विसर्जित करने का विधान हैं, हरिपदी में विसर्जित होने वाली अस्थियाँ 72 घंटों में ही रेणुरूप धारण कर लेतीं हैं। प्रत्येक अमावस्या, सोमवती अमावस्या, पूर्णिमा, रामनवमी, मोक्षदा एकादशी आदि प्रमुख धार्मिक पर्वों व अवसरों पर देशभर के असंख्य तीर्थयात्री श्रद्धालु व कांवड़िये हरिपदी में स्नान करने के लिए आते हैं।

17- श्री वराह मंदिर : भगवान् श्री विष्णु के तृतीय अवतार भगवान श्री वराह को समर्पित एक प्राचीन मंदिर जो हरिपदी आदि गंगा के तट पर स्थित है, पुराणों के अनुसार यह स्थान श्री वराहतीर्थ चक्रतीर्थ व विश्रामतीर्थ के नाम से भी विख्यात है। इस मंदिर का पुनर्निर्माण नेपाल के राज परिवार से संबंधित लोगों ने कराया था।

18- श्री सूर्यकुंड : सृष्टि के सबसे पौराणिक स्थानों में से एक सूर्यकुंड भगवान सूर्य की तपोस्थली है, जहां संतान प्राप्ति के लिए सूर्य ने सहस्रों वर्षों तक तप किया था। इसी स्थान पर सूर्य को संतान के रूप में वैवस्वतमनु व यम और यमुना की प्राप्ति हुई। इसी स्थान से सूर्यवंश की स्थापना हुई है, वहीँ श्रीमदभागवत महापुराण के अनुसार यह स्थान वैवस्वतमनु की राजधानी के रूप में वर्णित है, पुराणों में यह स्थान बर्हिस्मतीपुरी वैवस्वततीर्थ व सूर्यतीर्थ के नाम से भी जाना जाता है।

19- दूधेश्वर मंदिर : जहां चंद्रमा ने शाप से मुक्ति पाने के लिए सहस्रों वर्षों तक तप किया, पुराणों में यह स्थान सोमतीर्थ के नाम से विख्यात है।

20- योगेश्वर मंदिर : सोरों में योगमार्ग पर बना योगेश्वर मंदिर अतिप्राचीन है। यह साधकों के लिए भगवान शिव परिवार व हनुमान जी की उपासना का प्रमुख केंद्र है। पुराणों में स्थान को योगतीर्थ के नाम से जाना गया है।

21- रघुनाथ जी मंदिर : हरिपदी आदिगंगा के तट पर स्थित भगवान श्रीराम को समर्पित एक अतिप्राचीन मंदिर है, इसका पुनर्निमाण जयपुर राजपरिवार द्वारा कराया गया है।

22- सोमेश्वर मंदिर : हरिपदी आदिगंगा के तट पर स्थित भगवान शिव को समर्पित एक अतिप्राचीन मंदिर।

23- द्वारिकाधीश मंदिर : सोरों जी के मुख्य बाज़ार में स्थित भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित एक प्राचीन मंदिर है।

24- मेहता पुस्तकालय व संस्कृत पाठशाला : सोरों जी का एक सुविख्यात पुस्तकालय जहां संस्कृत पाठशाला भी है, वर्ष 1921 ई. में एटा के तत्कालीन कलेक्टर एनसी मेहता ने वर्तमान जनपद कासगंज में मेहता पुस्तकालय के नाम से दो पुस्तकालय स्थापित करवाए थे, जिनमें एक पुस्तकालय तीर्थ नगरी सोरों में और दूसरा कासगंज शहर में स्थापित किया था।

25- बाछरू मंदिर : किवदंती है कि यह स्थान भगवान श्री कृष्ण और गोपियों के महारास के लिए जाना जाता है। वहीँ यह स्थान भगवान श्री कृष्ण और बलराम की गौचारण स्थली भी है, जिसे पुराणों में वत्सक्रीड़नक तीर्थ के नाम से जाना गया है। इस स्थान से जुड़ी एक और मान्यता है कि, श्रीव्रह्मा जी भगवान श्रीकृष्ण की परीक्षा लेने के लिए उन्हें धरती से अचानक ही व्रह्म्लोक ले आए, तो प्रतिक्रियावश भगवान श्रीकृष्ण ने इसी स्थान पर ब्रह्मा जी को अपनी लीलाएं दिखाईं। परीक्षा उपरांत श्रीकृष्ण के नारायण सिद्ध होने पर व्रह्मा जी ने श्रीकृष्ण सहित उनकी गायों ग्वालों और गोपियों को सोरों जी के इसी बाछरू स्थल पर छोड़ दिया था।

26- लहरेश्वर महादेव : सोरों जी के गांव लहरा में भगवान शिव को समर्पित एक अतिप्राचीन मंदिर, जिसकी स्थापना भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न द्वारा की गई थी।

27- महाप्रभु की बैठक : सोरों जी में होडलपुर गांव के निकट आचार्य महाप्रभु वल्लभाचार्य की 23 वीं वैठक है, जो महाप्रभु की सत्संग व तपोस्थली स्थली भी मानी जाती है, इसके अतिरिक्त महाप्रभु के पुत्र श्री विट्ठलनाथ व उनके शिष्य श्री गोसाईं जी कि भी बैठक स्थित है।

28- अम्बागढ़ अखाड़ा : हरिपदी आदिगंगा के तट पर स्थित यह स्थान स्वामी श्री दयानंद सरस्वती के गुरु स्वामी श्री विरजानंद की तपोस्थली है।

29- दशनाम गणपति आवाहन सरकार अखाड़ा : हरिपदी आदिगंगा के तट पर स्थित नागा साधुओं का प्राचीन आश्रम, जहां प्रतिवर्ष मेला मार्गशीर्ष में भाग लेने के लिए बड़ी संख्या में नागा साधु एकत्रित होते हैं।

30- गोस्वामी तुलसीदास जन्मभूमि : सोरों जी के मोहल्ला योगमार्ग में स्थित श्रीरामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी की जन्मभूमि है। जहां तुलसीदास जी का जन्म 1511 ईस्वी, विक्रम संवत् 1568 व शक संवत् 1433 में श्रावण मास शुल्पक्ष सप्तमी विशाखा नक्षत्र में दिन शुक्रवार को हुआ था। उनकी माता का नाम हुलसी व पिता का नाम आत्माराम शुक्ल था।

31- साध्वी रत्नावली जन्मभूमि : सोरों जी का निकटवर्ती ग्राम बदरिया गोस्वामी तुलसीदास जी की धर्मपत्नी साध्वी रत्नावली की जन्मभूमि है।

32- स्वामी श्री नंददास जी जन्मभूमि : भक्तिकाल में कृष्णभक्ति शाखा व पुष्टिमार्गीय अष्टछाप के प्रख्यात महाकवि स्वामी नंददास जी का जन्म वर्ष विक्रम संवत 1572 के आसपास सोरोंजी के निकटवर्ती ग्राम रामपुर वर्तमान श्यामपुर/श्यामसर में हुआ था। स्वामी नंददास जी के पिता का नाम पंडित जीवारामशुक्ल व माता का नाम चंपादेवी था। स्वामी नंददास जी गोस्वामी तुलसीदास जी के चचेरे भाई थे।

33- गुरु श्री नृसिंह पाठशाला : सोरों जी के मोहल्ला चौधरियान में गोस्वामी तुलसीदास जी के गुरु श्री नृसिंह की पाठशाला है, जहां गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की थी।

34- गुरुद्वारा छैवीं पातशाही : यह गुरुद्वारा शिख पंथ परंपरा के छठवें गुरु श्री हरगोविंद सिंह जी को समर्पित है, हरिपदी आदिगंगा के तट पर स्थित इस स्थान पर छठवें गुरु श्री हरगोविंद से पूर्व दसवें गुरु श्री गुरुगोविन्द सिंह व प्रथम गुरु श्री गुरुनानक देव जी भी तीर्थ प्रवास कर चुके हैं, इनके हस्तलिखित हुक्मनामा आज भी मौजूद हैं।

35- सीता रसोई : किवदंती है कि अपनी सोरों जी सूकरक्षेत्र तीर्थयात्रा के दौरान मां सीता ने इस स्थान पर भोजन बनाया था, कालांतर में यह स्थान सीता रसोई के नाम से विख्यात हुआ।

36- करुआ देवता : सोरों जी परिक्रमा मार्ग पर भागीरथ गुफा के निकट स्थित स्थानीय लोक देवता जिन्हें करुआ देवता के नाम से जाना जाता है।

37- पंचकोशी परिक्रमा : सोरों जी सूकर क्षेत्र महातीर्थ के चारों ओर स्थित वृत्ताकार मार्ग को पंचकोशी परिक्रमा के नाम से जाना जाता है, इस महातीर्थ परिक्रमा में कई अंतरवर्तीय तीर्थ हैं, जिनकी परिक्रमा करने से सातों द्वीपों की परिक्रमा का फल प्राप्त होता है, श्री ब्रह्मा जी आगया से सप्त ऋषियों ने अक्षय नवमी के दिन सूकर क्षेत्र की परिक्रमा की थी की। वहीँ भगवान श्री राम ने मोक्षदायिनी एकादशी की तिथि को अन्नोत्सव कर सोरों सूकर क्षेत्र की पंचकोशी परिक्रमा कर पुण्य प्राप्त किया था।

38- भोगपुर वाली देवी : सोरों जी निकटवर्ती ग्राम भोगपुर वाली देवी का मंदिर मां भद्रकाली देवी को समर्पित है, यह मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना है।

39- मां भद्रकाली मंदिर : सोरों जी के निकटवर्ती ग्राम ब्रह्मपुरी में स्थित भद्रकाली मंदिर मां कलि देवी को समर्पित है, बताया जाता है कि मां भद्रकाली का यह विग्रह धरती के गर्भ से प्रकट हुआ है। यह मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना है।

40- महर्षि वाल्मीकि आश्रम रामछितौनी : सहावर व गंजडुंडवारा के बीच स्थित ग्राम रामछितौनी पौराणिक काल से ही आस्था का एक बड़ा केंद्र रहा है, जहां महर्षि वाल्मीकि आश्रम आज भी एक टीले पर विद्यमान है, इस टीले अर्थात वाल्मीकि आश्रम के सामने ही एक विशालकाय झील मौजूद है। किवदंती है कि महर्षि वाल्मीकि का इस स्थान पर भी एक आश्रम था, जहां माता सीता को लव और कुश नाम के दो पुत्रों की प्राप्ति हुई थी। प्रतिवर्ष चैत्र मास शुक्ल पक्ष की नवमी को यहाँ एक बड़ा मेला भी लगता है।

41- वनखंडेश्वर मंदिर : गंजडुंडवारा का वनखंडेश्वर मंदिर एक अति प्राचीन मंदिर है, जो भगवान शिव को समर्पित है। वहीँ इस परिसर में बनखंडी देवी का विग्रह भी विराजमान है। कहा जाता है कि यहां आज भी धरती के गर्भ से देवी देवताओं के विग्रह प्रकट होते हैं।

42- राजा द्रुपद किला : पटियाली शहर के मध्य महाभारत कालीन राजा द्रुपद का किला आज भी अपने पौराणिक स्वरुप में मौजूद है, वर्तमान समय में जिसके ऊपर तहसील मुख्यालय, खंड विकास कार्यालय, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र व पशु चिकित्सालय स्थापित है। किवदंती है कि आज से 5 हज़ार साल पूर्व पटियाली और कम्पिल का क्षेत्र अखंड पांचाल राज्य का प्रशासनिक केंद्र था और राजा द्रुपद इस अखंड राज्य के अधिपति थे। अखंड पांचाल राज्य भारत के 16 महाजनपद में से एक था।

43- पाटलावती पीठ : श्रीदुर्गाष्टोत्तरशतनामस्त्रोत्र के अनुसार पटियाली की माता पाटलावती देवी पीठ का वर्णन 41 वें खंड में मिलता है। किवदंती है कि माता पाटलावती देवी राजाद्रुपद और गुरु द्रोणाचार्य की कुल देवी थीं, वहीँ द्रौपदी की पहली मंगला आरती भी इसी मंदिर में हुई थी। द्रौपदी के स्वयंवर में जाने से पूर्व पांडवों ने मां पाटलावती के दर्शन किए थे।

44- गुरु द्रोणाचार्य आश्रम व जन्मभूमि : पटियाली में गुरु द्रोणाचार्य का आश्रम आज भी अपने पौराणिक स्वरुप में विद्यमान है, किवदंती है कि इसी स्थान पर गुरु द्रोणाचार्य का जन्म हुआ था, और पांडवों के गुरु बनने से पूर्व यहीं उनका प्रारंभिक जीवन बीता, जिसके बाद उन्होंने इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) के पास एक गुरुकुल की स्थापना की थी, जो स्थान आज गुरुग्राम के नाम से प्रसिद्ध है ।

45- सूफी संत अमीर खुसरो की जन्मभूमि : तेहरवीं व चौहदवीं सदी के प्रमुख शायर, लेखक, गायक, संगीतकार, कब्बाली सितार राग इमान जिल्फ़ साजगरी आदि के जनक व "तबला" वाद्य यंत्र के आविष्कारक, सूफी संत, हिंदी खड़ी बोली के प्रथम कवि, अमीर खुसरो का जन्म 27 दिसंबर 1253 में कासगंज जनपद के पटियाली कस्बे में हुआ था।

46- पाताली महादेव : पटियाली शहर का पाताली महादेव मंदिर भगवान् शिव को समर्पित है, जिसके बारे में किवदंती है कि इस शिवलिंग का प्राकट्य धरती के गर्भ से हुआ है। यह मंदिर महाभारत काल से पूर्व का स्थित है।

47- मेंह्देश्वर मंदिर : पटियाली में बूढ़ी गंगा के तट पर स्थित मेंह्देश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जिसके बारे में किवदंती है कि यह मंदिर महाभारत कालीन है।

48- हनुमानगढ़ी: पटियाली में बूढ़ी गंगा के तट पर स्थित अति प्राचीन हनुमान गढ़ी मंदिर श्री हनुमान जी को समर्पित है।

49- रंग जी मंदिर : पटियाली का रंग जी मंदिर भगवान श्री विष्णु को समर्पित है, जिसके बारे में किवदंती है कि यह मंदिर महाभारत कालीन है।

50- सीता राम मंदिर : पटियाली का सीता राम मंदिर भगवान श्री राम व माता सीता को समर्पित है, जिसके बारे में किवदंती है कि यह मंदिर महाभारत कालीन है।

51- वरदराज मंदिर : पटियाली का वरदराज मंदिर भगवान श्री वरदराज को समर्पित है, जिसके बारे में किवदंती है कि यह मंदिर महाभारत कालीन है।

52- नृसिंह मंदिर : पटियाली का नृसिंह मंदिर भगवान श्री नृसिंह को समर्पित है, यह मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना है।

53- गोपाल जी मंदिर : पटियाली का गोपाल जी मंदिर भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित है, जिसके बारे में किवदंती है कि इस स्थान पर भगवान् श्रीकृष्ण ने प्रवास किया था।

54- दरियावगंज के पास प्राचीन स्थल : दरियावगंज के पास स्थित एक प्राचीन किले के अवशेष मौजूद हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह किला राजा द्रुपद का सैनिक पढ़ाव था।

55- स्योर देवी टील : दरियावगंज के पास एक टीले पर विराजमान मंदिर मां दुर्गा को समर्पित है, यह मंदिर सैकड़ों वर्ष पुराना है, यहां प्रतिवर्ष एक भव्य मेले का आयोजन होता है।

56- ऋषि मार्कण्डेय आश्रम व टीला : दरियावगंज के निकट एक प्राचीन आश्रम आज भी अपने पौराणिक स्वरूप में विद्यमान है। किवदंती कि यह आश्रम महामृत्युंजय मंत्र के रचियता मार्कंडेय ऋषि व भृगु ऋषि की तपोस्थली रही है।


* उपरोक्त सामग्री को इस वेबसाइट पर प्रस्तुत करने के लिए जिला पर्यटन एवं संस्कृति परिषद कासगंज के सदस्य का सहयोग लिया गया है ।